रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात तक रफ़उल यदैन के हदीसों से प्रमाण

लेखक: ग़ुलाम मुस्तफ़ा ज़हीर अमनी पुरी

पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) अपने हाथों को (रफ़्उल यदैन) कंधों तक उठाया करते थे:


  1. नमाज़ शुरू करते समय।
  2. रुकू (झुकने) में जाते समय।
  3. रुकू से उठते समय।
  4. पहले दो रक़अत के बाद उठते समय।
इस अमल (रफ़्उल यदैन) को छोड़ा जाना कहीं साबित नहीं होता। नीचे दिए गए प्रमाण इसके निरंतर जारी रहने को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

प्रमाण क्रमांक 1

हदीस अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा)

“निश्‍चित रूप से, अल्लाह के रसूल (ﷺ) नमाज़ शुरू करते समय, रुकू के लिए तक्बीर कहते समय, और जब रुकू से सिर उठाकर ‘समीअल्लाहु लिमन हामिदाह, रब्बना व-लकल हम्द’ कहते थे, तब अपने हाथों को कंधों तक उठाते थे। सज्दा के वक़्त ऐसा नहीं करते थे।”
(सह़ीह़ बुख़ारी: 1/102, हदीस: 735, 738, 738; सह़ीह़ मुस्लिम: 168, हदीस: 390)

हदीस के रावी का अमल

सुलेमान अश-शैबानी कहते हैं:

“मैंने सालिम बिन अब्दुल्लाह को नमाज़ शुरू करते समय हाथ उठाते, रुकू करते समय हाथ उठाते और रुकू से सिर उठाते हुए देखा। मैंने उनसे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने पिता (अब्दुल्लाह बिन उमर) को ऐसा करते देखा, और उन्होंने कहा कि उन्होंने अल्लाह के रसूल (ﷺ) को ऐसा करते देखा।’”
(हदीस अस-सिराज: 2/34-35, हदीस: 115, इसकी सनद सहीह है)

चिंतन (Reflection)

सुब्हानअल्लाह! यह एक सुंदर प्रमाण है कि पैग़म्बर (ﷺ) ने रफ़्उल यदैन को आख़िर तक जारी रखा। अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) ने पैग़म्बर (ﷺ) को रफ़्उल यदैन करते देखा और उसी पर अमल किया। उनके बेटे सालिम (जो ताबिई थे) ने अपने पिता को देखा, और वे पैग़म्बर (ﷺ) की सुन्नत का पालन कर रहे थे। अगर रफ़्उल यदैन मंसूख (लागू न रहने वाला) हो गया होता, तो हदीस के रावी और साहाबी अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) इससे कैसे बेख़बर रहते, जबकि सदियों बाद कुछ लोग इसे छोड़ दिया गया बताते हैं?

प्रमाण क्रमांक 2

हदीस मालिक बिन हुवैरीस (रज़ियल्लाहु अन्हु)

मालिक बिन हुवैरीस (रज़ियल्लाहु अन्हु) पैग़म्बर (ﷺ) के पास 20 दिन ठहरे। वापस लौटते समय पैग़म्बर (ﷺ) ने उनसे फ़रमाया:

“ऐसे नमाज़ पढ़ो जैसे मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है।”
(सह़ीह़ बुख़ारी: 1/88, हदीस: 631)

हदीस के रावी का अमल

अबू क़िलाबा (रह़िमहुल्लाह) रिवायत करते हैं:

“उन्होंने मालिक बिन हुवैरीस (रज़ियल्लाहु अन्हु) को नमाज़ पढ़ते हुए देखा और वह नमाज़ शुरू करते समय, रुकू में जाते समय और रुकू से सिर उठाते समय हाथ उठाया करते थे। उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह (ﷺ) भी ऐसा ही करते थे।”
(सह़ीह़ बुख़ारी: 1/102, हदीस: 737; सह़ीह़ मुस्लिम: 1/168, हदीस: 391)

चिंतन (Reflection)

मालिक बिन हुवैरीस (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने पैग़म्बर (ﷺ) की वफ़ात के बाद भी रफ़्उल यदैन जारी रखा, क्योंकि पैग़म्बर (ﷺ) का हुक्म था: “ऐसे नमाज़ पढ़ो जैसे मुझे पढ़ते हुए देखा है।” इससे साबित होता है कि पैग़म्बर (ﷺ) ने आख़िरी वक़्त तक रफ़्उल यदैन किया।

प्रमाण क्रमांक 3

हदीस वाइल बिन हुजर (रज़ियल्लाहु अन्हु)

“उन्होंने पैग़म्बर (ﷺ) को नमाज़ शुरू करते समय हाथों को कानों तक उठाते हुए देखा, फिर अपनी चादर को लपेट लेते और दायाँ हाथ बाएँ हाथ पर रखते। जब रुकू करने का इरादा करते, तो अपने हाथों को चादर से बाहर निकालकर उठाते, तक्बीर कहते और रुकू करते। जब ‘समीअल्लाहु लिमन हामिदाह’ कहते, तो अपने हाथों को उठाते और अपने हाथों के बीच सजदा करते।”
(सह़ीह़ मुस्लिम: 1/173, हदीस: 401)

नोट

  • वाइल बिन हुजर (रज़ि) सन 9 हिजरी में पैग़म्बर (ﷺ) की ख़िदमत में आए थे।
    (उम्दतुल क़ारी बाय आइनी हनफ़ी: 5/274)
  • उन्होंने दो बार पैग़म्बर (ﷺ) को देखा—एक बार पहली मुलाक़ात में और दूसरी बार सर्दी के मौसम में वापस आकर—और दोनों बार रफ़्उल यदैन होते देखा।
    (सुनन अबू दाऊद: 727 (इसकी सनद हसन है))

प्रमाण क्रमांक 4

हदीस अली बिन अबी तालिब (रज़ियल्लाहु अन्हु)

“पैग़म्बर (ﷺ) फ़र्ज़ नमाज़ के लिए खड़े होते, तक्बीर कहते और अपने हाथों को कंधों तक उठाते। इसी तरह जब क़िरात पूरी करके रुकू का इरादा करते और रुकू से सिर उठाते तो भी अपने हाथ उठाते थे। वह नमाज़ में बैठते समय हाथ नहीं उठाते थे। दो रक़अत के बाद उठते समय भी वह हाथ उठाकर तक्बीर कहते थे।”
(सुनन अबू दाऊद: 744; मुसनद अहमद: 1/93 (इसकी सनद हसन है))

नोट

  • इमाम तिर्मिज़ी (रह़िमहुल्लाह) ने इस हदीस को हसन सहीह कहा है।
  • इमाम इब्न ख़ुज़ैमा (रह़िमहुल्लाह) ने इसे सहीह क़रार दिया है। हदीस:584हदीस: 584हदीस:584

रावी का बयान

सुलेमान बिन दाऊद अल-हाशिमी (रह़िमहुल्लाह) फ़रमाते हैं:

“यह हदीस, ‘अज़-ज़ुह्री से सालिम, सालिम से उनके पिता (अब्दुल्लाह बिन उमर)’ वाली हदीस की तरह ही है।”
(सुनन तिर्मिज़ी, हदीस: 3423, इसकी सनद सहीह है)

रावी के बारे में अतिरिक्त जानकारी

अब्दुर्रहमान बिन अबी ज़िनाद को अधिकांश मोहद्दिसीन ने विश्वसनीय (थिक़ा) माना है, जैसा कि:

  • हाफ़िज़ इब्न हजर (रह़िमहुल्लाह) कहते हैं:

    “अधिकांश के नज़दीक वह विश्वसनीय हैं, हालाँकि कुछ लोगों ने उन पर बिना ठोस कारण के आपत्ति की।”
    (नताइजे अल-अफ़्कार बाय इब्न हजर: 304)
  • उनकी हदीस मदीना में सही पाई गई और इराक़ में ही कुछ गड़बड़ मिली। यह रिवायत मदनी है—अल्हम्दुलिल्लाह।

प्रमाण क्रमांक 5

हदीस जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु)

“जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि) नमाज़ शुरू करते समय, रुकू करते समय और रुकू से उठते समय अपने हाथ उठाते थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने पैग़म्बर (ﷺ) को ऐसा करते देखा है।”
(सुनन इब्न माजा: 868 (इसकी सनद सहीह है))

नोट

  • अबू ज़ुबैर मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन तद्रुस (ताबिई) ने explicitly (स्पष्ट रूप से) यह ज़िक्र किया है कि उन्होंने जाबिर (रज़ि) से सीधा सुना “मुसनदअस−सिराज”(92)“मुसनद अस-सिराज” (92)“मुसनदअस−सिराज”(92)।

चिंतन (Reflection)

पैग़म्बर (ﷺ) की वफ़ात के बाद एक ताबिई ने सहाबी जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि) को रफ़्उल यदैन करते देखा और उन्होंने बयान किया कि पैग़म्बर (ﷺ) भी ऐसा ही करते थे। अगर पैग़म्बर (ﷺ) ने इसे छोड़ दिया होता, तो सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) वफ़ात के बाद इस पर क़ायम क्यों रहते?

प्रमाण क्रमांक 6

हदीस अबू मूसा अल-अशअरी (रज़ियल्लाहु अन्हु)

“क्या मैं तुम्हें दिखाऊँ कि पैग़म्बर (ﷺ) कैसे नमाज़ पढ़ते थे? उन्होंने तक्बीर कही और अपने हाथ उठाए, फिर रुकू के लिए तक्बीर कही तो अपने हाथ उठाए, फिर ‘समीअल्लाहु लिमन हामिदाह’ कहा तो हाथ उठाए, और फ़रमाया, ‘तुम भी ऐसा ही करो,’ लेकिन दो सज्दों के बीच हाथ नहीं उठाए।”
(सुनन अद-दारक़ुत्नी: 1/292, हदीस: 1111 (इसकी सनद सहीह है))
हाफ़िज़ इब्न हजर (रह़िमहुल्लाह) कहते हैं:

“इसके रावी विश्वसनीय हैं।”
(अत्तल्ख़ीसुल हबीऱ: 1/219)

चिंतन (Reflection)

यह दावा ख़ारिज करता है कि हाथ उठाना कभी “मंसूख” हुआ हो। अबू मूसा अल-अशअरी (रज़ि) पैग़म्बर (ﷺ) की वफ़ात के बाद भी रफ़्उल यदैन करते और सिखाते रहे।

प्रमाण क्रमांक 7

हदीस अबू हुमैद अस-साइदी (रज़ियल्लाहु अन्हु)

उन्होंने पैग़म्बर (ﷺ) की नमाज़ को दस सहाबा के सामने बयां किया। उन्होंने नमाज़ शुरू करते समय, रुकू में जाते समय, रुकू से उठते समय, और दो रक़अत के बाद उठते समय रफ़्उल यदैन किया। उन दसों सहाबा ने कहा:

“तुमने सच बयान किया। पैग़म्बर (ﷺ) इसी तरह नमाज़ पढ़ते थे।”
(मुसनद अहमद: 5/424; सुनन तिर्मिज़ी: 304 (सनद सहीह))

नोट

  • इमाम तिर्मिज़ी (रह़िमहुल्लाह) ने इसे हसन सहीह कहा है।
  • इमाम इब्न ख़ुज़ैमा 587587587, इमाम इब्न अल-जारूद 192192192, और इमाम इब्न हिब्बान 186518651865 ने भी इसे सहीह क़रार दिया है।
  • हाफ़िज़ ख़त्ताबी मआलिमुस्सुनन:1/194मआलिमुस्सुनन: 1/194मआलिमुस्सुनन:1/194 और हाफ़िज़ नववी ख़िलासतुलअह़काम:353ख़िलासतुल अह़काम: 353ख़िलासतुलअह़काम:353 ने भी इसे सहीह कहा है।
  • हाफ़िज़ इब्न अल-क़य्यिम (रह़िमहुल्लाह) फ़रमाते हैं:

    “यह हदीस (अबू हुमैद की) सहीह है और उस पर अमल क़ाबिले-क़बूल है। इसमें कोई ऐब नहीं। कुछ लोगों ने इस पर बेवजह आपत्ति की, जिससे अल्लाह ने हदीस के जानकारों को महफ़ूज़ रखा है।”
    (तह़ज़ीबुस्सुनन: 2/416)
  • इमाम मुहम्मद बिन याह्या अज़-ज़हली अबू अब्दुल्लाह अन-नैसाबूरी (रह़िमहुल्लाह) (वफ़ात 258 हिजरी) कहते हैं:

    “जो यह हदीस सुने और रुकू से सिर उठाने के बाद रफ़्उल यदैन न करे, उसकी नमाज़ ناقص (अधूरी) है।”
    (सह़ीह़ इब्न ख़ुज़ैमा: 1/298, सनद सहीह)

प्रमाण क्रमांक 8

इमाम अबू इस्माईल मुहम्मद बिन इस्माईल अस-सुलमी (रह़िमहुल्लाह) की रिवायत

“मैंने अबू नोमान मुहम्मद बिन फ़ज़्ल (रह़िमहुल्लाह) के पीछे नमाज़ पढ़ी। उन्होंने नमाज़ शुरू करते समय, रुकू में जाते समय और रुकू से सिर उठाते समय रफ़्उल यदैन किया। मैंने उनसे इसके बारे में पूछा। उन्होंने कहा, ‘मैंने इमाम हम्माद बिन ज़ैद (रह़िमहुल्लाह) के पीछे नमाज़ पढ़ी, उन्होंने भी यही किया। मैंने उनसे पूछा। उन्होंने कहा, ‘मैंने इमाम अय्यूब अस-सख़्तियानी (रह़िमहुल्लाह) के पीछे नमाज़ पढ़ी, उन्होंने भी यही किया। मैंने उनसे पूछा। उन्होंने कहा, ‘मैंने इमाम अता बिन अबी रबाह (रह़िमहुल्लाह) के पीछे नमाज़ पढ़ी, उन्होंने भी यही किया। मैंने उनसे पूछा। उन्होंने कहा, ‘मैंने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पीछे नमाज़ पढ़ी, उन्होंने भी यही किया। मैंने उनसे पूछा। उन्होंने कहा, ‘मैंने अबू बक्र अस-सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पीछे नमाज़ पढ़ी, उन्होंने भी यही किया। और उन्होंने कहा कि उन्होंने पैग़म्बर (ﷺ) के पीछे नमाज़ पढ़ी, और पैग़म्बर (ﷺ) अपने हाथों को नमाज़ शुरू करते समय, रुकू में जाते समय और रुकू से सिर उठाते समय उठाते थे।’”
(अस्सुनन अल-कुबरा बाय अल-बैहक़ी: 2/73 (इसकी सनद सहीह है))
इमाम अल-बैहक़ी (रह़िमहुल्लाह) कहते हैं:

“इसके रावी विश्वसनीय हैं।”
हाफ़िज़ ज़हबी (रह़िमहुल्लाह) अल−मुहज़़्ज़बफीइख़्तिसारअस्सुननअल−कबीर:2/49अल-मुहज़़्ज़ब फी इख़्तिसार अस्सुनन अल-कबीर: 2/49अल−मुहज़़्ज़बफीइख़्तिसारअस्सुननअल−कबीर:2/49 और हाफ़िज़ इब्न हजर (रह़िमहुल्लाह) ने भी रावियों को थिक़ा क़रार दिया है।

चिंतन (Reflection)

यह “गोल्डन चेन” साफ़ तौर पर दिखाती है कि साहाबा व ताबिईन ने पैग़म्बर (ﷺ) के बाद भी इस अमल को जारी रखा।

अतिरिक्त नोट

इमाम अबू जाफ़र अहमद बिन إسहाक़ बिन बहलुल अल-बग़दादी (रह़िमहुल्लाह) (वफ़ात 318 हिजरी) कहते हैं:

“मैं इराकी मशरब का पैरोकार था, फिर मैंने ख़्वाब में पैग़म्बर (ﷺ) को नमाज़ पढ़ते हुए देखा। मैंने देखा कि वह पहले तक्बीर में, रुकू में जाते समय, और रुकू से सिर उठाते समय रफ़्उल यदैन करते हैं।”
(सुनन अद-दारक़ुत्नी: 1/292, हदीस: 1112 (सनद सहीह))
जो लोग अपने मज़हब (फ़िक़्ही मत) की बुनियाद अकाबिर (बड़े बुज़ुर्गों) के ख़्वाबों पर रखते हैं, क्या वे इस सुन्नत को अपनाने के लिए तैयार हैं, जिसे एक विश्वसनीय इमाम ने ख़्वाब में देखा और जो स्पष्ट रूप से हदीसों में मौजूद है?

नतीजा

रफ़्उल यदैन पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) की एक निरंतर सुन्नत है। इसे रद्द करने या मंसूख मानने का कोई सहीह हदीस प्रमाण नहीं मिलता। पूरी उम्मत ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे जारी रखा है। अल्लाह से दुआ है कि हमें भी इस सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे।

आमीन, या रब्बुल-आलमीन!
 
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